एक ओर पत्रकार, कहने को तो चौथा स्तम्भ है, वही पद में चूर नेता की ओछी सोच

उमरिया। सरकार के जिम्मेदार मंत्री के सामने एक वरिष्ठ भाजपा नेता ये बोल निश्चित रूप से यह बतलाते है कि ये वरिष्ठ भाजपा नेता पद के प्रभुत्व से सत्ता के नशे में चूर है, स्वयं के आरक्षित सीट के बाद उन्हें जमीन पर कुछ नहीं दिखाई देता है।
यदि पत्रकार साथियों के द्वारा शांति प्रिय तरीके से व्यवस्थाओं में कमियों को बताने का प्रयास किया गया, तो इसमें भाजपा नेता के ये बोल निश्चित रूप से यह दर्शाता है कि ये नेता अब स्वयं को सबकुछ मान बैठे है और इनके आगे आम जनता भी कुछ नहीं है, इन नेताओं को चुनने वाली जनता को ऐसे आयोजित कार्यक्रमों में जमीन भी नसीब नहीं होती, तमाम अव्यवस्थाओं के बीच यह कार्यक्रम में आम जनता बैठी रही। कूलर केवल चारों तरफ आग उगल रहे थे, लेकिन मंच में लगे कूलरों से ठंडी हवा बह रही थी। किसी नेता को जनता की और अपने मंच के सामने की व्यवस्था का ख्याल तक नहीं आता। ऐसे में सत्ता के नशे में चूर नेताओं को कम से कम अपनी भाषा का इस्तमाल सोच समझ कर करना चाहिए।
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