स्टे होम के नाम पर वन्य जीवों से खिलवाड़, SDO ने रचा इतिहास, घूस के दम पर बन रही बिल्डिंग
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उमरिया। यह कहने और बताने के लिए नही लिखा जा सकता कि बांधवगढ़ का जंगल और वन्यजीव सरकार सहित पर्यावरण के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं और इन्हें संरक्षित करने के लिए सरकारे करोड़ो खर्च कर रही है, और चार पुस्तो से बसे गांव को भारी भरकम मुआवजा राशि देकर कही और बसने के लिए कहा जता है बाबजूद इसके बांधवगढ़ नेशनल पार्क में जंगल और जंगली वन्यजीवों के लिए विभाग ही खतरा बनता जा रहा है, यहां एक ओर एनजीटी और विभाग के निर्देश जंगल व वन्यजीव बचाने का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पार्क प्रबंधन के एसडीओ स्वयं ही घूस के दम पर जंगल की सीमा से सटाकर रहायसी और व्यवसायिक निर्माण की मौखिक अनुमति प्रदान करने पीछे नही है
इसका ताजा उदाहरण है खितौली कोर एरिये के रंछा रेंज की जहां स्टे होम के नाम पर पहले परमीशन दी जाती है और फिर उसे व्यवसायिक में परिवर्तित कर बाहरी लोग अपना व्यवसाय बढ़ाने लग जाते हैं, अब भले ही इसमें चाहे जंगल कटे या फिर जानवर, उनसे इस बात की कोई चिंता नही होती है।
बताया जा रहा है कि स्टे होम के नाम पर बनने वाला यह रिसार्ट रंछा रेंज की कोर एरिया बाउंड्री से कुछ ही दूर पर स्थित है, जहां निर्माण कार्य प्रारंभ है, जिसकी शिकायत पूर्व गई थी, जिस पर लौ लक्शर के साथ बांधवगढ़ पार्क के एसडीओ ने जांच पड़ताल तो की, मगर उसे क्लीन चिट देते हुए पार्क के अंदर निर्माण की मौखिक अनुमति देते हुए चलते बने, इतना ही नही बताया जाता है कि गांधी छाप वाले हरे नोटों का कमाल यहां तक रहा कि बेचारे एसडीओ साब स्वयं को सभांल ही नही पाये और वैसे ही नोटों के दम पर अन्य रिसार्ट वालों को मकान सहित लाज बनाने की अनुमति अपने खाते से दे डाली, हालांकि इस संबंध मे जब उनसे बात की गई तो उन्होंने सारे मामले से पल्ला झाड़ते हुए यह कह दिया कि पूरा का पूरा मामला पार्क के डायरेक्टर साब देखते है, उन्हीं ने परमीशन दी होगी, जबकि पार्क डायरेक्टर का कहना है कि स्टे होम के नाम पर किसी भी प्रकार की परमीशन विभाग ने नही दी है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या बांधवगढ़ पार्क के डायरेक्टर झूठ बोल रहे हैं, या फिर एसडीओ, जिनकी बदौलत पार्क के जंगल और वन्यजीवों को असमय ही काल के गाल में समाहित करने स्वयं ही निर्णय ले लिया गया हो।
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