फिर एक पत्रकार हुआ एस सी एस टी एक्ट का शिकार, जानिये पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट के नियमो की अवमानना कर रही जीपीएम पुलिस , झूठे प्रकरणों पर मामले दर्ज कर पीड़ित को किया जा रहा परेशान
गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम जैसे कड़े कानूनों के प्रावधानों को लागू करने से पहले पुलिस अधिकारियों को सतर्क रहने की हिदायत दी है . जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि अधिकारी को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि जिन प्रावधानों को वह प्रथम दृष्टया लागू करना चाहता है, वे इस मामले में लागू होते हैं . अदालत ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां विशेष/कड़े कानूनों की प्रयोज्यता को कम करने के लिए नहीं की गई हैं, बल्कि केवल पुलिस को यह याद दिलाने के लिए हैं कि कानून को यांत्रिक रूप से लागू न करें
दरअसल ऐसा ही एक मामला जिला जीपीएम (गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही) के थाना मरवाही का है जहाँ एक पत्रकार सुशांत गौतम पर थाना प्रभारी लता चौरे द्वारा एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है जो माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशो का खुला अवमानना है . मामले को लेकर यह भी स्पष्ट है कि सुशांत गौतम पेशे से पत्रकार है जो विगत 5 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में निरंतर कार्यरत है जिसके द्वारा विभिन्न घटनाओं को लेकर समाचार का प्रकाशन करता रहता है इसी तारतम्यता पर मरवाही वन मंडल में नेचर कैम्प में गड़बड़ी को लेकर भी पत्रकार ने समाचार का प्रकाशन दिनांक 2/01/2023 को किया गया . समाचार के प्रकाशन के परिणामस्वरूप वन विभाग के उच्चाधिकारी मुख्य वन संरक्षक बिलासपुर वृत द्वारा त्रिस्तरीय जांच दल गठित किया गया जिसमे पत्रकार द्वारा प्रकाशित खबर सत्य और सही पाए जाने पर जांच में दोषी पाए गए तत्कालीन अधिकारी और कर्मचारी समेत तत्कालीन उपवनमंडलाधिकारी ए.के . चटर्जी , (से.नि.) सहायक वन संरक्षक संजय त्रिपाठी , सहायक वन संरक्षक एवं तत्कालीन परिक्षेत्र अधिकारी संजय त्रिपाठी , दरोगा सिंह मरावी , परिक्षेत्र सहायक रामकुमार बंजारे , उपवनक्षेत्रपाल मान सिंह श्याम , सौखीलाल सिंह , इंद्रजीत सिंह कंवर , अश्वनी कुमार दुबे , द्वारिका प्रसाद रजक , एवं समिति सचिव सुनील चौधरी , अध्यक्ष मूलचंद कोटे एवं HDFC शाखा प्रबंधक की संलिप्तता पाई गई थी एवं उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की गई थी .परिणामस्वरूप मामले में एफआईआर के प्रार्थी वनरक्षक सुनील चौधरी को तत्काल प्रभाव से निलबिंत किये जाने का आदेश दिनांक 17/02/2023 को पारित किया गया था . उक्त प्रकरण में 8 अधिकारी कर्मचारियो पर निलबंन की कार्यवाही की गई थी इसके अतिरिक्त इस वित्तीय अनियमितता के विरुद्ध दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध पुलिस कार्यवाही की अनुशंसा भी की गई थी परंतु इतने बड़े वित्तीय अनियमितता पर आज पर्यंत तक कार्यवाही लंबित है . वही इसके उलट जिसपर अपराध सिद्ध है उसपर कार्यवाही न कर पुलिस द्वारा पत्रकार पर ही झूठा मुकदमा दर्ज करना कही न कही पुलिस का भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने की मंशा को दर्शाता है .
उल्लेखनीय है कि इतने बड़े वित्तीय अनियमितता के दोषी अधिकारी कर्मचारी एवं प्रार्थी सुनील चौधरी पत्रकार से दुर्भावना रखने लगे और बदला लेने की नियत से अपने पद प्रभाव एवं अपनी जाति का बेजा उपयोग करते हुए पत्रकार पर झूठा मामला दर्ज कराया गया है .बताते चले की शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत दिनांक 3/01/2023 को मरवाही थाने में कराई गई थी वही नेचर कैम्प घोटाले का खुलासा पत्रकार द्वारा दिनांक 2/01/2023 को समाचार पत्र के माध्यम से प्रकाशित की गई थी . शिकायत कर्ता ने बताया कि उक्त घटना 31/12/2022 की है तब सवाल यह भी उठता है कि अगर मामला 31/12/2022 का था तो मरवाही सरकारी आवास में रहने वाले प्रार्थी को मरवाही थाने पहुँचने में तीन दिन लग गए . वही मामले में एफआईआर पुलिस द्वारा पांच माह बाद की गई इससे यह साफ परिलक्षित होता है कि शिकायत कर्ता द्वारा झूठी शिकायत दर्ज कराई गई है जिसमे पुलिस प्रशासन का पूरा महकमा वित्तीय अनियमितता के दोषी के साथ दोषी है जिसने बिना मामले की जांच किये अपराध पंजीबद्ध किया है .
अब सवाल यह उठता है पुलिस प्रशासन जिसका कार्य न्याय और आपराधिक गतिविधियों में लगाम लगाना है वही ही कानून और सुप्रीम कोर्ट के नियमो की अवमानना करने लगेगा तो आखिर आमजन कैसे पुलिस से न्याय की उम्मीद करेगा . जबकिं यह कोई एक मामला नही है हालही में हुए रतनपुर थाने में हुए मामले में भी पुलिस की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े हुए है जिसमे पुलिस द्वारा एक विधवा महिला पर अप्राकृतिक कृत्य पास्को एक्ट के तहत अपराध पंजीबद्ध किया जिसको लेकर समाज के सभी वर्ग समेत संवेदनशील लोगों ने विरोध किया तब जाकर पुलिस प्रशासन में बैठे उच्चाधिकारियो की नींद खुली और टीआई को लाइन अटैच कर खानापूर्ति कर ली गई वही अगर उस बेबस महिला के लिए अगर समाज के संवेदनशील लोग नही आते तो पुलिस से न्याय की उम्मीद की ही नही जा सकती थी . ऐसे में पुलिस के उच्चाधिकारियो समेत सरकार को भी ऐसे भ्रष्टाचार के पोषित पुलिस प्रशासन पर कड़ी कार्यवाही किये जाने की जरूरत है ताकि इन पुलिस अधिकारियों का मनोबल न बढ़े यह पुलिस अधिकारी अपने पद पॉवर का गलत इस्तेमाल करके समाज मे एक अराजकता का माहौल बना रहे है।
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