बांधवगढ़ नेशनल पार्क बना 'भ्रष्टाचार का जंगल', रिजॉर्ट मालिकों की मनमानी से स्थानीय प्रशासन और ग्राम पंचायत बेबस

उमरिया। विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान अब प्राकृतिक सुंदरता के बजाय यहां व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और प्रशासनिक लाचारगी के कारण सुर्खियों में है। यहां संचालित हो रहे रिजॉर्टों में भोजन की कीमतें आसमान छू रही हैं—एक सामान्य थाली 1000 से 1200 रुपये में परोसी जा रही है, जो कि पर्यटकों के लिए भारी आर्थिक शोषण जैसा प्रतीत होता है। वहीं दूसरी ओर, देश-विदेश के अन्य पर्यटन स्थलों पर मात्र 300 से 400 रुपये में पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो रहा है।
जब ग्राम पंचायत ताला के सरपंच से इस संबंध में बात की गई, तो उन्होंने साफ कहा, "रिजॉर्ट मालिक न तो पंचायत की बात सुनते हैं, न ही कोई टैक्स जमा करते हैं। उल्टे अपने रिसॉर्ट का कचरा रोड किनारे फेंक देते हैं जिससे पूरा गांव परेशान है। यहां न कलेक्टर की चलती है, न मुख्यमंत्री की सुनवाई होती है।”
प्रशासनिक अमला भी मौन!
स्थानीय थाना प्रभारी पर भी गंभीर आरोप लगे हैं कि वे आम जनों के फोन तक नहीं उठाते और न ही संवाद करने को तैयार रहते हैं। कई वर्षों से यहां पदस्थ प्रभारी को जैसे कोई नियंत्रण में रखने वाला ही नहीं बचा है।
अतिक्रमण या वैध कब्जा?
मानपुर तहसीलदार और हल्का पटवारी तिवारी जी से जब इस विषय में बात की गई तो उन्होंने दावा किया कि “कोई भी अवैध अतिक्रमण नहीं है, सभी लोग अपनी वैध जमीन पर काबिज हैं।” परंतु सवाल यह उठता है कि यदि सब कुछ वैध है तो फिर अर्जी-शिकायतें किस बात की हो रही हैं?
टाइगर हेवन रिसॉर्ट का मामला भी संदिग्ध
रिजॉर्ट संचालक जहां अपने रिजॉर्ट को 'संपूर्ण वैध' बताते हैं, वहीं प्रशासनिक हलकों में लेनदेन कर 'नंबर मैनेज' करने की चर्चा जोरों पर है। हल्का पटवारी तिवारी जी स्वयं स्वीकारते हैं कि “हमारी कोई नहीं सुनता, हम केवल नाम मात्र के पटवारी हैं।”
बांधवगढ़ नेशनल पार्क जहां देश-विदेश के पर्यटकों के लिए प्रकृति का उपहार है, वहीं यहां व्याप्त अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता इसे बदनाम कर रही है। यदि समय रहते सरकार और उच्च प्रशासन ने सख्त कदम नहीं उठाए, तो यह क्षेत्र न केवल पर्यटन बल्कि स्थानीय नागरिकों के जीवन के लिए भी संकट का कारण बन सकता है।
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