द्वारिका सेठ और मनीष के करम से बनी स्कूल ड्रेस
• कपड़े की क्वालिटी और लैब भेजे गये कपड़े पर अंतर क्यों..?*
• प्रबंधक से लेकर समन्वयक तक घूसखोरी में लगें
उमरिया। जिला मुख्यालय सहित पूरे जिले में सरकारी स्कूलों का ड्रेस बनाने का काम बड़ी ही तेजी गति से चला, मगर यहां भी भ्रष्टाचार ने अपनी दीमक छोड़ दी और अब यह दीमक नामक अधिकारी और ठेकेदार मिलकर छोटे बच्चों की ड्रेस को ही चट करने लगे हुए हैं, बताया जाता है कि यह दीमक द्वारिका और प्रमोद हैं, जो पूरे जिले अपने चहेतों को कपड़ा सप्लाई का काम दे रखा है, जिस बात की शिकायत वैसे तो वरिष्ठ अधिकारियों से की जा चुकी है मगर कार्यवाही की आंच आए तक बाहन नहीं आ सकी है, जिसका खामियाजा छोटे बच्चों और प्रदेश के मुखिया मामा अपने खजाना वहन करेगा।
बताया जाता है कि जिले में संचालित प्रायमरी और मिडिल स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों को ड्रेस देनी है, जिनको बनाने का काम स्व सहायता समूहों को दिया गया मगर हालात यह है कि समूह ने यूनिफार्म बना तो डाली मगर जो निविदा शर्त में बुरहानपुर टेस्ट लैब जाने वाला कपड़ा अलग है और ड्रेस बना कपड़ा अलग है, जिसके बाद कुछ लोगों ने बताया कि हर साल हम कपड़ा अपने हिसाब से तय करते थे, लेकिन इस बार करकेली जनपद के मसीहा बने मनीष श्रीवास्तव जी ने पूरा हिसाब किताब जिले के साहब प्रमोद शुक्ला को बता दिया और अब साहब ने पूरा मामला सेट करते हुए घटिया क्वालिटी का कपड़ा ले लिया जिसको सप्लाई करने वाले मुख्यालय के होनहार और बड़े कपड़ा व्यवसाई द्वारिका सेठ ने पूरा किया है।
आपको बता दें कि यह केवल करकेली जनपद के एक समूह का मामला है, जहां दिखाया कुछ गया और सप्लाई कुछ और दिया गया।
द्वारिका सेठ ने की सप्लाई
स्कूल में बच्चों के ड्रेस बनाने का काम जिस स्व सहायता समूह को मिला उस समूह के लोगों ने बताया कि यह पूरा कच्चा मटेरियल उमरिया बाजार के द्वारिका सेठ ने दिया है, हम जो कपड़ा देखें थे वह कुछ है और जो सप्लाई किया गया है वह कुछ है। मामले की शिकायत भी की गई मगर कार्यवाही या निरीक्षण कोसों दूर है, यहां बच्चों को सरकार उबारने में लगी है तो जिले के जिम्मेदार अधिकारी और ठेकेदार मिलकर रेवड़ियां छानने में पीछे नहीं है।
मनीष श्रीवास्तव ने कहा इनसे कपड़ा लो
हमको क्या पता था कि कहां से लेन-देन कपड़े का करना है, वो तो करकेली के मनीष सर ने ब्लाक बुलाया और कहा कि इन ठेकेदारों से क्रय करना है, अब सवाल यह है कि जिले के जिम्मेदार सीईओ मैडम ने अपने एक बयान में कहा है कि समूह कहीं से भी कपड़ा ले सकता है, लेकिन यहां तो झांसी और ग्वालियर जैसे बड़े शहरों से कपड़ा सप्लाई हुआ है, जहां न तो समूह देखने गया और न ही अधिकारी, जिसके बाद यह कह पाना जरा मुश्किल है कि समूह को आजादी है, यहां तो अधिकारी अपने चहेते ठेकेदारों से ही पूरा कच्चा मटेरियल ले रहें हैं और बेचारे समूह के लोग दिन रात पसीना बहाकर ड्रेस बना दिया और वह अब खराब या अच्छा यह तो प्रमोद शुक्ला या मनीष श्रीवास्तव ही बता पायेंगे।
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