संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र क्यों रहता है सवालों के घेरे में
उमरिया। संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र लगातार सवालों के घेरे में रहता है। कब कौन सी यूनिट ठप हो जाए इसका कोई पता नहीं। ना जाने जिम्मेदार क्या कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन जिम्मेदारों को यह भी पता नहीं होता है की कौन सी यूनिट में समस्याएं हैं और कौन सी यूनिट बंद हो सकती है।
सूत्रों की माने तो अभी हाल ही में 210 मेगावाट की उत्पादन क्षमता रखने वाली दो यूनिट केवल और केवल कोयले के अभाव में बंद हो गई, क्योंकि कोयले की सप्लाई पूरी नहीं की जा सकी, क्या इसके लिए बड़े ओहदे पर बैठे जिम्मेदारों की जवाब देही नहीं बनती है। कई बार तकनीकी समस्या के नाम पर भी यूनिट ठप्प पड़ जाती है जिसके लिए विशेषज्ञ इंजीनियर जो बैठे हुए हैं क्या वो एक मोटी सैलरी और अन्य सुविधाओ को लेने के लिए बैठे है। क्या उनकी यह जिम्मेदारी नहीं है कि किसी भी समस्या को होने के पहले उनके द्वारा भांप लिया जाए और उसे दूर करने का पहले से ही प्रयास किया जाए।
क्यों निचले तपके के कर्मचारी होते है परेशान
लगातार संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र से मजदूरों की मौत के मामले कन्वेयर बेल्ट में फंसने से सामने आती रहती है, इन बड़ी घटनाओं के बाद भी ज़िम्मेदार मौन दिखाई देते है। इन घटनाओं में एक मजदूर की जान बस जाती ही है और न ही वो केवल अकेले अपाहिज होता है उसके पीछे उसका सारा परिवार जीवन भर के लिए अपाहिज हो जाता है तब भी संजय गांधी तबीयत के केंद्र में बैठे जिम्मेदार अपनी आंख बंद करके बैठे रहते है। लगातार पीड़ित मजदूर कर्मचारी अपनी ओटी और तमाम भक्तों के लिए दर-दर भटकते रहते हैं लेकिन जिम्मेदारों को इस पर कोई असर नहीं आता।
किसी भी समस्या से क्यों अनभिज्ञ रहते है जिम्मेदार
इन सारे छोटे, बड़े मामलों में क्यों अनभिज्ञ बने हुए हैं संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र में ज़िम्मेदार। अभी हाल ही में एक नए मुख्य अभियंता के रुप में एक जिम्मेदार को बैठाया गया है की शायद अब सब कुछ ठीक होगा लेकिन स्थिति जस की तस है।
इस मेंटनेंस के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते है ये मेंटेनेंस केवल कागज में होता है या वाकई में ईमानदारी अभी भी जिंदा है। जिम्मेदारों के केविन में ईमानदारी के बड़े बड़े स्लोगन जो नजर आते है वो शायद केवल आने जाने वाले लोगों के पढ़ने के लिए होते हैं, उनका अमल स्वयं की असल जिंदगी में नही होता है, ये विचारणीय है।
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