नाकामियों को छिपाने स्मार्टफोन पर प्रतिबंध, संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट प्रबंधन पर उठे सवाल

उमरिया। जिले के बिरसिंहपुर पाली स्थित संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र प्रबंधन एक बार फिर सवालों के घेरे में है। प्लांट के मुख्य अभियंता एच.के. त्रिपाठी ने हाल ही में आदेश जारी कर ठेका श्रमिकों, आउटसोर्सिंग कर्मचारियों, प्रशिक्षणरत युवाओं और अस्थाई कामगारों को पावर हाउस परिसर में एंड्रॉयड या स्मार्टफोन लेकर आने पर रोक लगा दी है। आदेश के अनुसार, यदि कोई कर्मचारी गलती से स्मार्टफोन लेकर आता है तो उसे तुरंत अपने सुपरवाइजर को सौंपना होगा और आगे सुरक्षा विभाग को सुपुर्द करना होगा। केवल साधारण की-पैड वाले मोबाइल फोन ही परिसर के भीतर ले जाने की अनुमति होगी।
नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश?
सूत्रों का कहना है कि प्लांट प्रबंधन की कई नाकामियां लगातार समाचार पत्रों और मीडिया की सुर्खियों में आ रही हैं। प्रबंधन को शक है कि मजदूर और कर्मचारी स्मार्टफोन के माध्यम से तस्वीरें और वीडियो बाहर भेजकर प्लांट की खामियों को उजागर कर रहे हैं। यही कारण है कि यह नया प्रतिबंध लगाया गया है। आरोप यह भी है कि यह कदम सुरक्षा से ज्यादा सूचनाओं के प्रवाह पर रोक लगाने की मंशा से उठाया गया है।
बायोमेट्रिक मशीन अब तक बंद
गौरतलब है कि संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र में कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए पिछले साल दिसंबर में बायोमेट्रिक मशीन लगाई गई थी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने महीनों बाद भी यह मशीन चालू नहीं हो पाई है। अधिकारियों के लिए लागू होने वाली इस सुविधा को शुरू नहीं किया गया, जबकि श्रमिकों और अस्थाई कर्मचारियों के लिए स्मार्टफोन प्रतिबंधित करने का आदेश तेजी से लागू कर दिया गया। इससे प्रबंधन की प्राथमिकताओं और कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
मुख्य अभियंता चुप, एडीशनल सीई ने थोप दिया हेडक्वार्टर पर
जब इस आदेश को लेकर मुख्य अभियंता एच.के. त्रिपाठी से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। वहीं अतिरिक्त मुख्य अभियंता राजेंद्र साहू ने कहा कि यह हेड क्वार्टर का बहुत पुराना आदेश है, जिसे लागू किया जा रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि प्लांट परिसर के भीतर मजदूर अक्सर रील्स देखतेऔर बनाते हैं, जो सुरक्षा की दृष्टि से खतरा है। इसी वजह से स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाया गया है। लेकिन जब बायोमेट्रिक मशीन के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह विषय उनके विभाग का नहीं है, इसे एचआर देखता है। वे स्वयं इस मामले की जानकारी लेकर ही कुछ कह पाएंगे।
दोहरी नीति पर सवाल
यह स्थिति साफ तौर पर प्लांट प्रबंधन की दोहरी नीति को उजागर करती है। एक ओर अधिकारी यह मानने को तैयार नहीं कि बायोमेट्रिक जैसी आधुनिक प्रणाली अब तक चालू क्यों नहीं हुई, वहीं दूसरी ओर मजदूरों पर प्रतिबंध लगाने में कोई देर नहीं की गई। इससे यह संदेश जाता है कि प्रबंधन अपनी जवाबदेही और पारदर्शिता से बचने की कोशिश कर रहा है।
सुरक्षा या सूचना पर रोक?
एडीशनल सीई ने भले ही सुरक्षा को कारण बताया हो, लेकिन सवाल यह है कि सुरक्षा मानकों को केवल मजदूरों और अस्थाई कर्मचारियों तक सीमित क्यों किया जा रहा है। यदि वाकई सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है, तो बायोमेट्रिक सिस्टम जैसी व्यवस्था क्यों महीनों से ठप पड़ी है? क्या मजदूरों का स्मार्टफोन लाना बड़ा खतरा है या फिर प्लांट के अंदर व्याप्त अव्यवस्थाओं का उजागर होना?
मजदूरों में नाराजगी
स्मार्टफोन प्रतिबंधित करने के आदेश से मजदूरों और कर्मचारियों में नाराजगी देखी जा रही है। उनका कहना है कि यह आदेश उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों पर रोक लगाने जैसा है। प्लांट प्रबंधन को चाहिए था कि वह अपनी कमियों को दूर करने पर ध्यान दे, न कि मजदूरों को दोषी ठहराते हुए उन पर बंदिशें लगाए।
प्रबंधन की प्राथमिकताएं सवालों के घेरे में
इस पूरे घटनाक्रम ने संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र के प्रबंधन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जबतक अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से बचते रहेंगे और खामियों पर पर्दा डालने की कोशिश करेंगे, तब तक न तो व्यवस्था सुधरेगी और न ही कर्मचारियों का विश्वास बन पाएगा। स्मार्टफोन प्रतिबंध लगाने से समस्याओं को छिपाया जा सकता है, लेकिन उनका समाधान नहीं किया जा सकता।
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