कविता संग्रह "खुरदुरे पत्थर" का विमोचन, विमर्श और रचनापाठ सम्पन्न

बाजारवाद ने छीन लिया है गौरैया का घर और दाना-पानी - डॉ विजय बहादुर
उमरिया। बाजारवाद ने गौरैया का घर और दाना-पानी छीन लिया है। यह विचार वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कवि लोकनाथ के कविता संग्रह "खुरदुरे पत्थर" के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा गौरैया उस आदिवासी समाज का प्रतीक है जो प्रताड़ित कर निर्वासित किया जा रहा है । आपने कहा कि कवि लोकनाथ की संवेदना में वह समूचा निसर्ग शामिल है, मध्यवर्गीय चेतना के कविगण इस वक्त जिसकी ओर से प्रायः आँख मूँदे हुए हैं । अपनी अनुभव दृष्टि में "खुरदुरे पत्थर" की कविताएं जिस बुनियादी कोमलता को शामिल किए हुए हैं, उतनी ही विचारोत्तेजक भी हैं ।"
ज्ञात को की लोकनाथ उमरिया के वरिष्ठ पत्रकार, संस्कृतिकर्मी और सर्वोदय समाज के राष्ट्रीय संयोजक संतोष कुमार द्विवेदी का साहित्यिक नाम है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की विन्ध्य और महाकौशल इकाईयों के संयुक्त तत्वावधान में सांस्कृतिक संस्था वातायन उमरिया और प्रेस क्लब उमरिया के सहयोग से यह आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि सुविख्यात वरिष्ठ कवि और निबंधकार अष्टभुजा शुक्ल थे ।
आयोजन में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष दिनेश कुशवाह, बुंदेलखंड छत्रसाल विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो बहादुर सिंह परमार, वरिष्ठ नवगीतकार वेद प्रकाश शर्मा, सुविख्यात कवि आलोचक डा नलिन रंजन सिंह, कहानीकार गीताश्री ने विमोचित पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए ।
कला विशेषज्ञ संजय विश्वास द्वारा परिसर को सुरुचिपूर्ण कलाकृतियों से सजाया गया था तो आयोजन को लोकपरम्परा के गीतों से संवारा गया। यशस्वी गीत नवगीत कवि यश मालवीय और लोकगायिका अर्चना मालवीय द्वारा प्रस्तुत शिवकुमार अर्चन के लोक की सगुण उपासना के गीत "पिंजरा में बोले राम राम टुइयां" और लोकगायक नरेंद्र बहादुर सिंह एवं अरविंद पटेल द्वारा प्रस्तुत निर्गुण निष्ठा के लोकगीत "सुअना रे" ने लोकदर्शन की भव्य झांकी प्रस्तुत की। उमरिया जिले की सांस्कृतिक विरासत का परिचय नवगीतकार विभूति तिवारी ने दिया और रामनिहोर तिवारी ने बांधवगढ़ की साहित्यिक परम्परा के परिचय के साथ आमंत्रित साहित्यकारों लोककलाकारों व संस्कृतिकर्मियों का स्वागत किया।
अपने उद्बोधन में समारोह के मुख्य अतिथि अष्टभुजा शुक्ल ने कहा पुरुष प्रधान समाज में ध्रुवतारा अखंड सुहाग का प्रतीक रहा है "उसकी जगह बैठी हो तुम" लिखकर कवि ने नारीवाद का उत्कृष्ट क्रांतिकारी रूपक गढ़ा है। वरिष्ठ कवि आलोचक डॉ दिनेश कुशवाह ने कहा चिकने पत्थर अक्सर देवता हो हैं । जो अवसरवाद की पराकाष्ठा है । उनसे प्रतिरोध की उम्मीद बेमानी है। "खुरदुरे पत्थर" इस खुरदुरे यथार्थ से हमारा परिचय कराता है । डॉ नलिन रंजन सिंह ने कहा कि दुष्यंत कुमार ने जिस प्रकार 5tगुलमोहर के फूलों का बिंब चुना उसी प्रकार कवि लोकनाथ प्रकृति के साथ तादात्म्य और क्रांति के लाल रंग को रेखांकित करने के लिए पलाश पुष्पों का बिम्ब चुनते हैं। लोकनाथ अपने गांधीवादी किरदार में अजातशत्रु हैं फिर भी वे अपनी जनपक्षधरता के लिए शत्रु बनाने से भय नहीं खाते। गीताश्री ने कहा सागर में समा जाना हर नदी की अंतिम परिणति है, उसका प्रेम तो तट में तटस्थ खड़े वृक्षों, खुरदुरे पत्थरों और उदास किनारों को भी मिलता है। "नदी भी किसी के प्यार में बहती होगी" कविता में बहुत खूबसूरती के साथ कवि लोकनाथ ने इसे अभिव्यक्त किया है । बुंदेली के विद्वान लेखक, संपादक बहादुर सिंह परमार ने कहा कि लोकनाथ के कविता संग्रह में लोक के अनूठे बिंब उभरते हैं। समाजिक आंदोलनों में उनकी लोकव्याप्ति ही उन्हें लोकनाथ बनाती है। वरिष्ठ नवगीतकार और साहित्य समीक्षक वेद प्रकाश शर्मा ने कहा कि कवि के रचना संसार में ज्ञान और संवेदना का मणिकांचन संयोग मिलता है। इस सत्र का संचालन सम्मेलन की छतरपुर इकाई के अध्यक्ष नीरज खरे और नवगीतकार विभूति तिवारी ने किया ।
इसके पूर्व कवि लोकनाथ के कविता संग्रह "खुरदुरे पत्थर"का भव्य विमोचन किया गया । समाज के सभी वर्गों के शताधिक प्रतिनिधियों के हाथ में "खुरदुरे पत्थर" की प्रतियां थीं । जिसे देखकर आमंत्रित साहित्यकारों ने कहा कि उन्होंने आज तक ऐसा विलक्षण विमोचन नहीं देख । यह पांच प्रतियों वाला विमोचन नहीं कवि लोकनाथ की सच्ची लोकव्याप्ति का प्रमाण है । दूसरा सत्र लब्धप्रतिष्ठ कवि दिनेश कुशवाह की अध्यक्षता में शुरू हुआ जिसमें समकालीन कविता के प्रमुख कवि मणि मोहन ने "गौरैया", विवेक चतुर्वेदी ने "ताले" कुंदन सिद्धार्थ ने "प्रेम के पक्ष में प्रार्थना", निदा रहमान ने "बिगड़ी हुई लड़की", अमेयकांत ने "महेश" और तंजीम खान ने "हथकड़ी" कविता पढ़ी और श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी । हिंदवी के संपादक ख्यात कवि अविनाश मिश्र युवा कवि पंकज प्रखर ने अपने रचनापाठ से श्रोताओं का विशेष ध्यान खींचा । अध्यक्षीय टिप्पणी के साथ डॉ दिनेश कुशवाह ने अपनी कविता "खाओ और मुटाओ राजा" से श्रोताओं को विभोर कर दिया। संचालन वरिष्ठ कवि अनिल मिश्र और सुविख्यात युवा कवि विवेक चतुर्वेदी ने किया।
बड़गांव में हुआ कवि सम्मेलन
रात को जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर ग्राम बड़ागांव में वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल के मुख्य आतिथ्य और डॉ दिनेश कुशवाह की अध्यक्षता में "राष्ट्रीय कवि सम्मेलन" आयोजित किया गया। सम्मेलन में ख्यातिलब्ध गीत नवगीत कवि यश मालवीय, वरिष्ठ कवि नारायणदास 'विकल' विनोद पदरज, हास्य कवि शरद जायसवाल, वरिष्ठ कवि, वसंत सकरगाए, गज़कार दौलतराम प्रजापति, अप्रतिम लोककवि डॉ. शिवशंकर मिश्र 'सरस', हंसराज 'हंस' और रावेन्द्र शुक्ल के अलावा युवा ग़जलकार आयुष सोनी, महेश अजनबी, सरोज पाण्डेय एवं शालिनी श्रीवास्तव ने अपने गीत गजल और कविताओं से बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीण जन समुदाय को मंत्रमुग्ध कर दिया । कवि सम्मेलन का आगाज गीतकार विभूति तिवारी के सुमधुर रचनापाठ से हुआ।
कवियों और लोक कलाकारों का स्वागत और सम्मान ग्राम सरपंच राकेश द्विवेदी ने अंगवस्त्र और माला पहनाकर किया। शुरुआती संचालन और स्वागत वक्तव्य वरिष्ठ कवि रामनरेश तिवारी 'निष्ठुर' ने दिया । सुविख्यात गीतकार यश मालवीय के जनगीतों और ग़ज़लों के पाठ ने देर रात तक शमां बांधे रखा। लोकनृत्य से कलाकारों ने अतिथियों को आनंदविभोर किया। कविता पाठ का संचालन युवा ग़जलकार दीपक अग्रवाल ने किया। आयोजन में रंगकर्मी नरेन्द्र बहादुर सिंह, रोशनी मिश्र, सर्व सेवा संघ के युवा सेल के राष्ट्रीय संयोजक भूपेश भूषण, संगीत शिक्षक सोहन चौधरी, समाजकर्मी अजमत उल्ला खान, सहर्ष अग्रवाल, भूपेन्द्र त्रिपाठी, वातायन संस्था के अध्यक्ष जगदीश प्यासी एवं समस्त कविगण जिसमें मुख्य हैं शंभू सोनी पागल, रामलखन सिंह चौहान अक्खड़, सम्मेलन के सचिव राजकुमार महोबिया, शेख धीरज, शिवानंद पटेल, सत्येंद्र गौतम, योगेश पाण्डेय, करण सिंह, राकेश उर्मालिया, शेख जुबैर, शिवांश सेंगर, सौरभ त्रिपाठी, संपत नामदेव, जिला प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरुण त्रिपाठी सहित स्थानीय पत्रकारों, समाजसेवियों, लोककलाकारों और गण्यमान्य नागरिकों ने आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान किया।
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