मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से 33 जिला मुख्यालयों में "वनवासी लीला नाट्यों " की होंगी प्रस्तुतियां 

Jun 3, 2023 - 11:04
 0  35
मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से 33 जिला मुख्यालयों में "वनवासी लीला नाट्यों " की होंगी प्रस्तुतियां 

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा तैयार रामकथा साहित्य में वर्णित वनवासी चरितों पर आधारित "वनवासी लीलाओं" क्रमशः भक्तिमती शबरी और निषादराज गुह्य एवं गोंड जनजातीय आख्यान रामायनी केंद्रित लछमन चरित की प्रस्तुतियां जिला प्रशासन के सहयोग से प्रदेश के 33 जिला मुख्यालय में आयोजित की जा रही है। इस क्रम में जिला प्रशासन उमरिया के सहयोग से तीन दिवसीय वनवासी लीलाओं की प्रस्तुतियां 3 एवं 5जून , 2023 को मंगल भवन परिसर, उमरिया में आयोजित की जा रही है। प्रस्तुतियों की श्रृंखला में सर्वप्रथम 3 जून ,2023 को श्री सुश्री भारती सोनी-सीधी द्वारा वनवासी लीला नाट्य निषादराज गुह्य एवं 4 जून को श्री विनोद मिश्रा-रीवा द्वारा भक्तिमती शबरी एवं 05 जून को श्री बृजेश रिछारिय़ा- सागर के निर्देशन में लछमन चरित की प्रस्तुति दी जायेगी। यह तीन दिवसीय कार्यक्रम प्रतिदिन सायं 7 बजे से आयोजित किया गया है। 

          कार्यक्रम के पहले निषादराज गुह्य की प्रस्तुति दी गई। प्रस्तुति की शुरूआत में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की। भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं। आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है। केवट की प्रेम वाणी सुन, आज्ञा पाकर गंगाजल से केवट पांव पखारते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि हे प्रभु हम एक जात के हैं मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर से पार कराते हैं इसलिए उतरवाई नहीं लूंगा। लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं। सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया।   

          दूसरे दिन वनवासी लीला नाट्य भक्तिमती शबरी की प्रस्तुति दी गई। लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं।  अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय़ शबरी का लालन-पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं। 
          तीसरे दिन लछमन चरित की प्रस्तुति दी गई। हमारी संस्कृति और जीवन धारा का प्रत्येक ताना-बाना भगवान श्रीराम की कथा से बुना हुआ है। हमारे सामाजिक मूल्य में ऐसा कुछ भिन्न नहीं, जो श्रीरामकथा से प्रेरित न हो। श्रीरामकथा की व्यापकता और जड़े इतनी गहरी हैं कि भारत के अलग-अलग भागों में निवासरत वनवासी समुदायों ने इस कथा को अपने अनुभव और आस-पास के प्रतीकों से समृद्ध कर गढ़ा गया और अपने जीवन का मूल्य बनाया। हम यहाँ मध्यप्रदेश के गोण्ड वनवासी समुदाय की कथा रामायनी को लीला नाट्य रूप में देखेंगे। यह लीला कई मायनों में बहुत प्रेरणास्पद है। खासकर इस लीला के महानायक है लछमन यती यानी तपस्वी लक्ष्मण। इस कथा में लक्ष्मण के संकल्प और उसे पूरा करने की उनकी इच्छाशक्ति को दृढ़ता के साथ दिखाया गया है। इस लीला में भगवान श्रीराम के मदद मांगने पर पांडवों का उपस्थित होना कोई कालगत त्रुटि नहीं हैं। वनवासी की काल समझ में कुछ भी व्यतीत होने जैसा नहीं है। समय एक रेखा में न होकर वृत्त में है। यह हमें समझना है। आइए. गोण्ड समुदाय की रामायनी गाथा को लीला रूप में देखें। श्रीरामकथा की एक और सरिता की निरंतर प्रवाहमानता को एक अलग रूप में दर्शन करें लछमन चरित लीला नाट्य।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow